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ध्यान से इष्ट की प्राप्ति
इतश्चिन्तामणिर्दिव्य इतः पिण्याकखण्डकम् ।
ध्यानेन चेदुभे लभ्ये क्वाद्रियन्तां विवेकिनः ॥२०॥
इत चिंतामणि है महत्, उत खल टूक असार।
ध्यान उभय यदि देत बुध, किसको मानत सार ॥२०॥
अर्थः एक ओर तो देवाधिष्ठित अर्थ को देने वाला दिव्य चिन्तामणि रत्न और दूसरी ओर बुरा व छोटा सा खली का टुकडा, यदि ये दोनो ही ध्यान के द्वारा प्राप्त किये जा सकते हैं तो कहो विवेकी पुरुष दोनों में से किसका आदर करेंगे? इसलिये आर्त व रौद्र ध्यान रूप इस लोक संबंधी फल की अभिलाषा को छोडकर धर्म व शुक्लध्यान वाले परलोक संबंधी उत्कृष्ट फल की प्राप्ति के लिये ही आत्मा का ध्यान करना चाहिये।
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