Title
उपकार या अपकार
यज्जीवस्योपकराय तद्देहस्यापकारकम्।
यद्देहस्योपकाराय तज्जीवस्यापकारकम् ॥१९॥
आत्मा हित जो करत है, सो तनको अपकार।
जो तनका हित करत है, सो जियको अपकार ॥१९॥
अर्थः समय, समय ही जीव का सबसे बडा मित्र है और सबसे बडा शत्रु भी। समय रहते भेदविज्ञान करना ही बुद्धिमत्ता है और उसे व्यर्थ गवाना ही मूर्खता। इस अल्प जीवन में जो अनशनादिक जीव के पापों का नाश करने वाले होने के कारण जीव को उपकारी हैं वही अनुष्ठान शरीर के लिये अपकारी व कष्टदायी है। और जो धनादिक व भोजनादिक शरीर को उपकारक है, वही पापपूर्वक होने से दुर्गति के कारण हैं व जीव को अहितकारी है, उसको वास्तविक उपकारक तो धर्म ही है। इसलिये यह समझ रखनी चाहिये कि धन नही अपितु धर्म की साधना ही योग्य है।
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Gatha