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Title

Ishtopdesh Gatha 16

धन का मोह

त्यागाय श्रेयसे वित्तमवित्तः सञ्चिनोति यः ।

स्वशरीरं स पङ्केन स्नास्यामीति विलिम्पति ॥ १६ ॥

पुण्य हेतु दानादि को, निर्धन धन संचेय।

स्नान हेतु निज तन कुधी, कीचड़ से लिम्पेय ॥१६॥

अर्थ: जैसे कोई व्यक्ति अपने शरीर को स्नान कर लूँगा, इस विचार से कीचड अथवा मल से लपेटता है, तो जगत में वह मूर्ख ही कहा जायेगा। उसी प्रकार कोई जीव पाप के द्वारा पहले धन कमा लिया जाये; बाद में दानादि धर्म क्रिया द्वारा पुण्य का संचय करके उस पाप को नष्ट कर डालूँगा; ऐसा विचार करके नौकरी-खेती-व्यापार इत्यादि कार्यों में संलग्न हो जाये तो वह भी अज्ञानी ही है। क्योंकि धनादिक का उपार्जन किसी भी जीव को, किसी भी काल में शुद्ध वृत्ति से हो ही नही सकता।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Landscape

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

16