Exhibits

Title

Ishtopdesh Gatha 11

संसार में जीव किस तरह घूमता है

रागद्वेषद्वयीदीर्घ -‌‌ नेत्राकर्षण - कर्मणा ।

अज्ञानात्सुचिरं जीवः संसाराब्धौ भ्रमत्यसौ ॥११॥

मथत दूध डोरी नितें, दंड फिरत बहु बार।

राग द्वेष अज्ञान से, जीव भ्रमत संसार ॥११॥

अर्थ: हे जीव! दो डोरीयों से बंधे उस दंड का विचार कर जो मथानी में दिन-रात बस खींचतानी में जुटा रहता है, वे रस्सियां उसे छोडती नही। उसी दंड की तरह यह जीव भी दिन-रात बस राग-द्वेष के बंधनों में फंसकर चतुर्गति रूप संसार समुद्र में घूम रहा है और घूमता ही रहेगा। जब तक ये राग-द्वेष की रस्सियों से बंधा है तब तक इस चक्र से निकलना असंभव है। अतः हे मोक्षार्थी! सम्पूर्ण पुरुषार्थ से इन बंधनों को छोड! तेरा कल्याण होगा।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

11