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Title

Ishtopdesh Gatha 04

शिव प्रद भावों से स्वर्ग सहज ही

यत्र भावः शिवं दत्ते द्यौः कियद् दूरवर्तिनी ।

यो नयत्याशु गव्यूतिं क्रोशार्धे किं स सीदति? ॥४॥

आत्मभाव यदि मोक्षप्रद, स्वर्ग है कितनी दूर।

दोय कोस जो ले चले, आध कोस सुख पूर॥४॥

अर्थ: जिसप्रकार कोई व्यक्ति भार उठाकर दो कोस तक आसानी से चलता है तो क्या उसके लिये भार सहित आधा कोस चलने में कोई समस्या हो सकती है? अवश्य नही! क्योंकि जिसने दो कोस का रास्ता सहजता से पार कर लिया वह आधे कोस के लिये क्यों परेशान होगा? क्योंकि अधिक शक्तिवान व्यक्ति के लिये अल्पशक्ति वाले कार्य तो स्वाभाविक ही है। ठीक उसीप्रकार जिस उत्कृष्ट आत्मपरिणाम से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, उन परिणामों से स्वर्गादिक की प्राप्ति तो सहज ही है।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

4