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Title

Ishtopdesh Gatha 02

निमित्तोपादान से सिद्धि

योग्योपादानयोगेन दृषदः स्वर्णता मता ।

द्रव्यादिस्वादिसंपत्तावात्मनोऽप्यात्मता मता ॥२॥

स्वर्ण पाषाण सुहेतु से, स्वयं कनक हो जाय।

सुद्रव्यादि चारों मिलें, आप शुद्धता थाय॥२॥

अर्थ: स्वर्णरूप परिणमन की योग्यता वाले पत्थर में छिपे सोने को जिसप्रकार अग्नि में ही तपाकर शुद्ध किया जा सकता है, प्रगट किया जा सकता है अर्थात एकमात्र स्वर्ण की पूर्ण शुद्धता में अग्नि ही कारण है अन्य नही; उसी प्रकार संसार में रहने वाले आत्मा की शुद्धता में उसी के अनुरूप शुद्ध द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की उपादानगत योग्यता ही कारण है, अन्य नही। इनकी सम्पूर्णता हो जाने पर आत्मा निश्चल एवं पूर्ण निर्मल हो जाता है। संसार से निकलकर परमात्मा होने का यही मार्ग है।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

33" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

2