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Title

Ishtopdesh Gatha 41

स्वरूप में व्यवहार गौण

ब्रुवन्नपि हि न ब्रूते गच्छन्नपि न गच्छति ।

स्थिरीकृतात्मतत्त्वस्तु पश्यन्नपि न पश्यति ॥४१॥

देखत भी नहिं देखते, बोलत बोलत नाहिं।

दृढ़ प्रतीत आतममयी, चालत चालत नाहिं ॥४१॥

अर्थः जिसने आत्मस्वरूप के विषय में स्थिरता प्राप्त कर ली है ऐसे ज्ञानी मुनिराज बोलते हुए भी नही बोलते, चलते हुए भी नही चलते और देखते हुए भी नही देखते हैं। जिन्होंने शुद्धात्मा को ही अपनी श्रद्धा का विषय बना लिया है, जिन्हें आहार के लिये चलते हुए भी चलने का भाव नही आता, संस्कार अथवा दूसरों के संकोच से धर्मादि का उपदेश देते हुए भी देने का भाव नही आता,  जिनप्रतिमाओं को देखते हुए भी देखने का भाव नही होता तो समझना कि उनका क्रिया की ओर नही अनुभव की ओर झुकाव है। उनकी परिणति में सिद्ध स्वभावी आत्मा ही झलकता है।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Landscape

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

41