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Title

Ishtopdesh Gatha 35

स्वयं ही ज्ञान में कारण

नाज्ञो विज्ञत्वमायाति विज्ञो नाज्ञत्वमृच्छति ।

निमित्तमात्रमन्यस्तु गतेर्धर्मास्तिकायवत् ॥३५॥

मूर्ख न ज्ञानी हो सके, ज्ञानी मूर्ख न होय।

निमित्त मात्र पर जान, जिमि गति धर्मतें होय ॥३५॥

अर्थः तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति के अयोग्य अभव्य जीव लाख प्रयत्न करने पर भी तत्त्वज्ञान को प्राप्त नही कर सकते और तत्त्वज्ञान के धारी भव्य जीव अनेक प्रयत्नों के बाद भी अज्ञानता को प्राप्त नही हो सकते। कोई भी प्रयत्न कार्य की उत्पत्ति करने के लिए स्वाभाविक गुण की अपेक्षा किया करता है। सैकड़ों उपायों से भी बगुला तोते की तरह नहीं पढ़ाया जा सकता है।

जिसप्रकार वज्र के गिरने के भय से घबरायी हुई दुनिया मार्ग छोडकर इधर-उधर भागने लगती है, आकुलित हो उठती है परन्तु शान्ति के सागर शुद्धात्मा में निवास करने वाले योगिगण अपने ध्यान से किंचित् भी विचलित नही होते तब ज्ञानरूपी प्रदीप से जिन्होंने मोह रूपी अंधकार को नष्ट कर दिया है ऐसे सम्यग्दृष्टि जीव क्या परिषहों के आने पर चलायमान हो जायेंगे? नही!

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

35