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Title

Ishtopdesh Gatha 32

वास्तविक उपकार

परोपकृतिमुत्सृज्य स्वोपकारपरो भव ।

उपकुर्वन्परस्याज्ञो दृश्यमानस्य लोकवत् ॥ ३२॥

प्रगट अन्य देहादिका, मूढ़ करत उपकार।

सज्जनवत् या भूल को, तज कर निज उपकार ॥३२॥

अर्थः उपकार की वास्तविक परिभाषा क्या? मुक्ति का उपकार ही पारमार्थिक उपकार है। यह मूर्ख जीव आयुपर्यंत शरीर को स्व जानकर उसके ही उपकार में सारा जीवन व्यर्थ गवां देता है। प्रत्यक्ष में भिन्न वस्तु का उपकार करता है परन्तु अनुभव से जानने में आने वाले निजात्मा का उपकार करने का विकल्प भी नही। वास्तविक वस्तुस्थिति को जानने वाले ज्ञानीजन इन्द्रियों के आधीन होकर शरीर के नही आत्मा के उपकार में तत्पर रहते हैं। अतः पर को पर और स्व को स्व जानकर आत्मोपकार करने में तत्पर हो जाओ।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

32