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Title

Ishtopdesh Gatha 26

ममत्व हेय है

बध्यते मुच्यते जीवः सममो निर्ममः क्रमात् ।

तस्मात्सर्वप्रयत्नेन निर्ममत्वं विचिन्तयेत् ॥२६॥

मोही बाँधत कर्म को, निर्मोही छुट जाय।

यातें गाढ़ प्रयत्न से, निर्ममता उपजाय ॥२६॥

अर्थः हे अबंध स्वभावी आत्मन्! बंधन से प्रत्येक प्राणी दुखी है और मुक्त तो होना चाहता है परन्तु उपाय के अभिज्ञान बिना कैसे हो? परमार्थ से तो जीव को; ना ही कर्मस्कंधों से भरा यह तीन लोक, ना ही हलनचलनादि रूप क्रिया,  ना इन्द्रियाँ, ना विषय-भोग और ना ही कोई चेतन-अचेतन पदार्थ बंधन के कारण हैं; जीव बंधता है तो मात्र अपने मोह रूप अज्ञान से। “ये मेरे हैं, मैं इसका हूँ”, इन विकल्पों के चक्रव्यूह में ये जीव अपनी वास्तविक सम्पत्ति भूलकर स्व से भिन्न द्रव्यों पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की चेष्टा करता है। इसलिये हर प्रकार से निर्ममता का विचार करना चाहिये।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

26