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Title

Ishtopdesh Gatha 22

ध्यान का प्रथम सोपान

संयम्य करणग्राममेकाग्रत्वेन चेतसः ।

आत्मानमात्मवान् ध्यायेदात्मनैवात्मनि स्थितम् ॥२२॥

मन को कर एकाग्र, सब इन्द्रिय-विषय मिटाय।

आतमज्ञानी आत्मा में, निजको निजसे ध्याय॥२२॥

अर्थः वास्तव में कोई इन्द्रियगत विषय आत्मा को विचलित नही करता, कर सकता। विषय नही अपितु उनमें पडी सुखबुद्धि दुखदायी है। विषय भोगों में भटकने वाला मन ही आत्मज्ञानी को आत्मज्ञान में बाधा है। यदि तू उस मन को ही एकाग्र कर लेगा तो इन्द्रिय विषय स्वयमेव मिट जायेंगे और आत्मज्ञान भी सहज प्राप्त हो जायेगा। अतः हे जीव! अपने में ही स्थित आत्मा को अपने द्वारा जान।

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

22