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ध्यान का प्रथम सोपान
संयम्य करणग्राममेकाग्रत्वेन चेतसः ।
आत्मानमात्मवान् ध्यायेदात्मनैवात्मनि स्थितम् ॥२२॥
मन को कर एकाग्र, सब इन्द्रिय-विषय मिटाय।
आतमज्ञानी आत्मा में, निजको निजसे ध्याय॥२२॥
अर्थः वास्तव में कोई इन्द्रियगत विषय आत्मा को विचलित नही करता, कर सकता। विषय नही अपितु उनमें पडी सुखबुद्धि दुखदायी है। विषय भोगों में भटकने वाला मन ही आत्मज्ञानी को आत्मज्ञान में बाधा है। यदि तू उस मन को ही एकाग्र कर लेगा तो इन्द्रिय विषय स्वयमेव मिट जायेंगे और आत्मज्ञान भी सहज प्राप्त हो जायेगा। अतः हे जीव! अपने में ही स्थित आत्मा को अपने द्वारा जान।
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Gatha