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Title

Ishtopdesh Gatha 21

आत्मा का स्वरूप

स्वसंवेदन सुव्यक्तस्तनुमात्रो निरत्ययः ।

अत्यन्तसौख्यवानात्मा लोकालोकविलोकन: ॥२१॥

निज अनुभव से प्रगट है, नित्य शरीर-प्रमान।

लोकालोक निहारता, आत्म अति सुखवान ॥२१॥

अर्थः आत्मा कोई काल्पनिक वस्तु नही, वह अनुभव से जानने में आने वाला तत्त्व है। वह स्वयं लोक-अलोक समस्त द्रव्य-गुण-पर्याय का ज्ञायक है, पर से निरपेक्ष अनन्त सुख स्वभावी है, अमूर्तिक होते हुए भी देहप्रमाण है, नित्य तथा योगिजनों द्वारा स्वानुभव में स्पष्ट है। अब एक बार पर से भिन्न निज स्वभाव का आस्वादन करके तो देख!

Series

Ishtopdesh

Category

Paintings

Medium

Acrylic on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Portrait

Artist

Manoj Sakale

Completion Year

01-May-2023

Gatha

21