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(परमात्मा को नमस्कार - मंगलाचरण)
यस्य स्वयं स्वभावाप्तिरभावे कृत्स्नकर्मणः ।
तस्मै संज्ञानरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने ॥१॥
स्वयं कर्म सब नाश करि, प्रगटायो निजभाव।
परमातम सर्वज्ञ को, वंदो करि शुभ भाव॥१॥
अर्थ: हे सर्वज्ञ परमात्मा! हे जिनेन्द्र देव! आपने अपने अपूर्व पुरुषार्थ से अपने निजस्वभाव को प्रकट करके समस्त कर्मों का सर्वथा अभाव कर दिया है। जिसके फलस्वरूप आप तीनलोक-तीनकाल के पूर्ण ज्ञानी हैं, वीतरागी हैं और अपने पूर्ण निर्मल स्वभाव के आनन्द में मग्न हैं। इसीलिये हे भगवन! मैं भी आप ही के समान कर्मों के नाश द्वारा पूर्ण स्वभाव की प्राप्ति के संकल्प के साथ आपको नमस्कार करता हूँ।
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Gatha