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UTTAM SANYAM DHARMA: Supreme Renunciation: In his doctrine, omniscient Lord has declared the fulfillment of five abstinence, five disciplines, three restraints, repression of four passions, and conquering five senses as the virtue of renunciation. Only Renunciation benefits the soul. Renounced soul is free from all evil and praised by all. He has incredible glory in this world and even in the next birth. Unrestrained suffers misery by self destruction and being passionate about the worldly things and thereby causing inauspicious bonding. Thus, only renunciation is beneficial to the Soul.
उत्तम संयम धर्म: पाँच महाव्रतों का धारण, पाँच समितियों का पालन, चार कषायों का निर्ग्रह, तीन दंडों का त्याग, पाँच इंद्रियों की विजय को जिनेन्द्र के परमागम में संयम कहा है। संयम ही आत्मा का हित है । इस लोक में संयम का धारक सभी लोगों द्वारा वंदनीय है , किसी भी पाप से लिप्त नहीं होता है , इसकी इस लोक में व परलोक में अचिंत्य महिमा है।असंयमी प्राणों का घात करके तथा विषयों में अनुराग करके अशुभ कर्मों का बन्ध करता हुआ दुःख भोगता है । अतः संयमधर्म ही जीव का हित है।
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Bol