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इष्ट-वियोग, अनिष्ट-योग में, विश्व मनाता है मातम।
हेय सभी है विश्व वासना, उपादेय निर्मल आतम॥२३॥
प्रिय पदार्थों के बिछुड़ जाने और अप्रिय पदार्थों का संयोग हो जाने पर संसारी प्राणी दुःख-शोक आदि करता है; परन्तु वास्तव में तो सभी विश्व-वासना/किसी भी पदार्थ के प्रति किसी भी प्रकार की आसक्ति/समस्त परलक्षी परिणाम हेय/छोडऩे-योग्य ही हैं। एकमात्र अपना निर्मल आत्मा ही उपादेय /आश्रय लेने - योग्य है। २३
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Shlok