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चतुर वैद्य विष विक्षत करता, त्यों प्रभु! मैं भी आदि उपाँत।
अपनी निंदा आलोचन से, करता हूँ पापों को शान्त॥७॥
हे प्रभो! जैसे चतुर वैद्य अपनी चतुराई से विष को शान्त कर देता है; उसीप्रकार मैं भी अपने पापों को शान्त करने के लिए प्रारम्भ से लेकर अन्त पर्यंत अपने सभी दुष्कृत्यों की निन्दा-आलोचना करता हूँ। ७
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Shlok