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जिस सुन्दरतम पथ पर चलकर, जीते मोह मान मन्मथ।
वह सुंदर-पथ ही प्रभु मेरा, बना रहे अनुशीलन पथ॥४॥
हे प्रभो! आपने आत्म-स्थिरता के जिस सुन्दर तम मार्ग पर चलकर मोह, मान, विषय वासना आदि विकारों को जीता है / नष्ट किया है; वही सुन्दर मार्ग मेरा भी अनुशीलन मार्ग बने; मैं भी उसी मार्ग पर चलकर स्वरूप-स्थिर रहूँ। ४
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Shlok