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Title

Gurudev's Vachanamrut Bol no.237

अरे! एक गाँव से दूसरे गाँव जाना हो तब लोग रास्ते में खाने के लिये कलेवा साथ ले जाते हैं; तो फिर यह भव छोडव़र परलोक में जाने के लिये आत्मा की पहिचान का कुछ कलेवा लिया? आत्मा कहीं इस भव जितना नहीं है; यह भव पूर्ण करके पीछे भी आत्मा तो अनन्त काल अविनाशी रहनेवाला है; तो उस अनन्त काल तक उसे सुख मिले उसके लिये कुछ उपाय तो कर। ऐसा मनुष्यभव और सत्संग का ऐसा अवसर मिलना बहुत दुर्लभ है। आत्मा की परवाह किये बिना ऐसा अवसर चूक जायेगा तो भवभ्रमण के दुःख से तेरा छूटकारा कब होगा? अरे, तू तो चैतन्यराजा! तू स्वयं आनन्द का नाथ! भाई, तुझे ऐसे दुःख शोभा नहीं देते। जैसे अज्ञानवश राजा अपने को भूलकर धूरे में लोटे, उसीप्रकार तू अपने चैतन्य स्वरूप को भूलकर राग के घूरे में लोट रहा है, परन्तु वह तेरा पद नहीं है; तेरा पद तो चैतन्य से शोभित है, चैतन्यरत्नजडित़ तेरा पद है, उसमें राग नहीं है। ऐसे स्वरुप को जानने पर तुझे महा आनन्द होगा ॥२३७॥

Series

Gurudev Vachanamrut

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

31-Dec-2021

Bol

237