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जो धान के छिलकों पर ही मोहित हो रहे हैं, उन्हीं को कूटते रहते हैं, उन्होंने चावलों को जाना ही नहीं है।
इसीप्रकार जो द्रव्यलिंग आदि व्यवहार में मुग्ध हो रहे हैं, (अर्थात जो शरीरादि की क्रिया में ममत्व किया करते हैं,) उन्होंने शुद्धात्मानुभवनरूप परमार्थ को जाना ही नहीं है, अर्थात ऐसे जीव शरीरादि परद्रव्य को ही आत्मा जानते हैं, वे परमार्थ आत्मा के स्वरूप को जानते ही नहीं।
(कलश 242 भावार्थ)
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Shlok