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जैसे हाथी को पकड़ने के लिए हथिनी रखी जाती है, हाथी कामान्ध होता हुआ उस हथिनिरूपी कुट्टनी के साथ राग तथा संसर्ग करता है, इसलिए वह पकड़ा जाता है और पराधीन होकर दुःख भोगता है । जो हाथी चतुर होता है, वह अपने बन्धन के लिए निकट आती हुई मनोरम अथवा अमनोरम हथिनिरूपी कुट्टनी को परमार्थतः बुरी जानकर उस हथिनी के साथ राग तथा संसर्ग नहीं करता।
इसीप्रकार अज्ञानी जीव कर्मप्रकृति को अच्छा समझकर उसके साथ राग तथा संसर्ग करते हैं, इसलिए वे बन्ध में पड़कर पराधीन बनकर संसार के दुःख भोगते हैं और जो ज्ञानी होता है, वह अपने बन्ध के लिए उदय में आती हुई शुभ या अशुभ सभी कर्म-प्रकृतियों को परमार्थतः बुरी जानकर उसके साथ कभी-भी राग तथा संसर्ग नहीं करता।
(गाथा 148 टीका)
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