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Title

Samaysaar - Kalash No. 101

शूद्रा के पेट से एक ही साथ जन्म को प्राप्त दो पुत्रों में से एक ब्राह्मण के यहाँ और दूसरा उसी शूद्रा के यहाँ पला, उनमें से एक तो “मैं ब्राह्मण हूँ” – इसप्रकार ब्राह्मणत्व के अभिमान से दूर से ही मदिरा का त्याग करता है, उसे स्पर्श तक नहीं करता; तथा दूसरा (पुत्र) “मैं स्वयं शूद्र हूँ” – यह मानकर नित्य मदिरा से ही स्नान करता है अर्थात उसे पवित्र मानता है। यद्यपि वे दोनों शूद्रा के पेट से एक ही साथ उत्पन्न हैं, इसलिए (परमार्थतः) दोनों साक्षात शूद्र है, तथापि वे जाति-भेद भ्रम सहित (आचरण) करते हैं।

इसीप्रकार पुण्य-पाप दोनों विभाव परिणति से उत्पन्न हुए हैं, इसलिए दोनों बन्धरूप ही हैं। व्यवहार दृष्टि से भ्रमवश उनकी प्रवृत्ति भिन्न-भिन्न भासित होने से वे अच्छे और बुरे रूप से दोनों प्रकार दिखाई देते हैं। परमार्थ दृष्टि तो उन्हें एकरूप ही, बन्धरूप ही, बुरा ही जानती है।

(कलश 101 श्लोकार्थ व भावार्थ)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

01-Jul-2018

Shlok

Kalash 101