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Title

Samaysaar - Gatha No. 67

जैसे किसी पुरूष को जन्म से लेकर मात्र “घी का घड़ा” ही प्रसिद्ध (ज्ञात) हो, उसके अतिरिक्त वह दूसरे घड़े को न जानता हो, उसे समझाने के लिए जो यह “घी का घड़ा” है सो मिट्टीमय है, घीमय नहीं। इसप्रकार (समझनेवाले के द्वारा) घड़े में “घी के घड़े” का व्यवहार किया जाता है।

इसीप्रकार इस अज्ञानी लोक को अनादि संसार से लेकर “अशुद्धजीव” ही प्रसिद्ध(ज्ञात) है, वह शुद्ध जीव को नहीं जानता, उसे शुद्ध जीव का ज्ञान कराने के लिए, “जो वर्णादिमान जीव है, सो ज्ञानमय हैं, वर्णादिमय नहीं” इसप्रकार जीव में वर्णादिमानपने का व्यवहार किया गया है, क्योंकि उस अज्ञानी लोक को “वर्णादिमान जीव” ही प्रसिद्ध (ज्ञात) है।

(गाथा 67 टीका)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48” x 36”

Orientation

Portrait

Completion Year

01-Jul-2018

Gatha

67