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Title

Samaysaar - Gatha No. 15

जैसे अनेक प्रकार के शाकादि भोजनों के सम्बध से उत्पन्न सामान्य लवण के तिरोभाव और विशेष लवण के आविर्भाव से अनुभव में आनेवाला जो लवण है, उसका स्वाद अज्ञानी, शाक-लोलुप मनुष्यों को आता है; किन्तु अन्य की सम्बन्ध रहितता से उत्पन्न सामान्य के आविर्भाव और विशेष के तिरोभाव से अनुभव में आनेवाला जो एकाकार अभेदरूप लवण है उसका स्वाद नहीं आता और परमार्थ से देखा जाये तो विशेष के आविर्भाव से अनुभव में आनेवाला (क्षाररसरूप) लवण ही सामान्य के आविर्भाव से अनुभव में आनेवाला (क्षाररसरूप) लवण है।

इसीप्रकार अनेक प्रकार के ज्ञेयों के आकार के साथ मिश्ररूपता से उत्पन्न सामान्य के तिरोभाव और विशेष के आविर्भाव से अनुभव में आनेवाला ज्ञान वह अज्ञानी, ज्ञेयलुब्ध जीवों के स्वाद में आता है; किन्तु अन्य ज्ञेयाकार की संयोग रहितता से उत्पन्न सामान्य के आविर्भाव और विशेष के तिरोभाव से अनुभव में आनेवाला एकाकार अभेदरूप ज्ञान स्वाद में नहीं आता और परमार्थ से विचार किया जाये तो, जो ज्ञान विशेष के आविर्भाव से अनुभव में आता है, वही ज्ञान सामान्य के आविर्भाव से अनुभव में आता है।

(गाथा 15 टीका)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

48" x 36"

Orientation

Landscape

Completion Year

01-Jul-2018

Gatha

15