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जैसे समुद्र का वृद्धि-हानिरूप अवस्था से अनुभव करने पर अनियतता (अनिश्चितता) भूतार्थ है – सत्यार्थ है; तथापि नित्य-स्थिर समुद्र-स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अनियतता अभूतार्थ है – असत्यार्थ है।
इसीप्रकार आत्मा का, वृद्धि-हानिरूप पर्याय भेदों से अनुभव करने पर अनियतता भूतार्थ है – सत्यार्थ है; तथापि नित्य- स्थिर (निश्चल) आत्म-स्वभाव के समीप जाकर अनुभव करने पर अनियतता अभूतार्थ है-असत्यार्थ है।
(गाथा 14 टीका)
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