Title
The poet believes that all the merits which were unable to find refuge elsewhere, have sought refuge with Lord Aadinath. It is not surprising that the arrogant demerits that found refuge elsewhere are not seen near you, probably even in one’s dream. 27.
हे मुनिपुंगव ! संसार में अवगुण धारी अनेक हैं। उत्तम गुणों के स्थान तो आप ही हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है, क्योंकि गुणों को आपके सिवा अन्यत्र कहीं स्थान नहीं मिला, और वे सारे के सारे मिलकर आपमें समाहित हो गये | दोषों को रहने के लिए आपमें काई स्थान बचा ही न था, किन्तु अनगिनत अवगुण धारी व्यक्तियों में जाकर वे दोष बस गये | एक-एक दोष को अनेकों स्थान मिल गये। इससे उन्हें गर्व होना स्वाभाविक था| चाह कर भी वे दोष भगवान् को छूना तो दूर, देखने में भी समर्थ न हो सके | यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि गर्व या अभिमान से भरे लोगों को कोई भी अपने यहाँ स्थान नहीं देता, फिर उन दोषों को भला आप में स्थान कैसे मिलता ?
Series
Category
Medium
Size
Orientation
Artist
Completion Year
Shlok