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Title

Bahenshree's Vachanamrut Bol no. 412

मरण तो आना ही है जब सब कुछ छूट जायेगा। बाहर की एक वस्तु छोड़ने में तुझे दुःख होता है, तो बाहर के समस्त द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव एकसाथ छूटने पर तुझे कितना दुःख होगा? मरण की वेदना भी कितनी होगी? “ कोई मुझे बचाओ “ ऐसा तेरा हृदय पुकारता होगा। परन्तु क्या कोई तुझे बचा सकेगा? तू भले ही धन के ढेर लगा दे, वैद्य-डॉक्टर भले ही सर्व प्रयत्न कर छूटें, आसपास खड़े हुए अनेक सगे – सम्बन्धियों की ओर तू भले ही दीनता से टुकुर-टुकुर देखता रहे, तथापि क्या कोई तुझे शरणभूत हो ऐसा है? यदि तूने शाश्वत स्वयंरक्षित ज्ञानानन्दस्वरूप आत्मा की प्रतीति-अनुभूति करके आत्म-आराधना की होगी, आत्मा में से शान्ति प्रगट की होगी, तो वह एक ही तुझे शरण देगी। इसलिए अभी से वह प्रयत्न कर। “सिर पर मौत मन्डरा रहा है” ऐसा बारम्बार स्मरण में लाकर भी तू पुरुषार्थ चला कि जिससे “अब हम अमर भये, न मरेंगे“ ऐसे भाव में तू समाधि पूर्वक देह त्याग कर सके। जीवन में एक शुद्ध आत्मा ही उपादेय है।

Series

Bahenshree Vachanamrut

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Artist

Anil Naik

Completion Year

18-Jul-2019

Bol

412