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साधक जीव को अपने अनेक गुणों की पर्यायें निर्मल होती हैं, खिलती हैं। जिसप्रकार नन्दनवन में अनेक वृक्षों के विविध प्रकार के पत्र -पुष्प - फलादि खिल उठते हैं , उसीप्रकार साधक आत्मा को चैतन्यरूपी नन्दनवन में अनेक गुणों की विविध प्रकार की पर्यायें खिल उठती हैं।
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Bol