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Title

Nirjara Bhavana

निर्जरा भावना:- आदि तीर्थाधिनाथ ऋषभदेव ने धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करके धर्मयुग का प्रारंभ किया। निर्जरा भावना के चिंतन से अत्यंत विरक्त होकर ऋषभदेव स्वयं दीक्षित हुए। दिगम्बर जिनलिंग धारण करके और छः महिने का प्रतिमायोग धारण करके कायोत्सर्ग मुद्रा में मौनपूर्वक खड़े रहे। तप के प्रभाव से अनंत कर्मों की निर्जरा करके महान ऋद्धि प्रकट हुई, छः महिने ध्यान योग में लीन होकर अतीन्द्रिय आनंद अनुभव करते हैं। ध्यान से बाहर आकर वे आहार के लिए विहार करते हैं। परंतु निर्दोष आहार और आहार विधि से लोग अनजान थे इसलिए आहार का योग न बन पाया और छः महिने तक वे तप करते रहे। इस तरह एक वर्ष के तप के प्रभाव से तपोवन में रात भी प्रकाशमान दिखने लगी, हिंसक पशु वैर छोड़कर शान्ति से रहने लगे। तप के प्रभाव से इन्द्रासन कम्पित होता है। इन्द्र महाराज अत्यंत भक्तिपूर्वक तपस्वी तीर्थंकर की पूजा करते हैं। तीर्थंकर मुनिराज ऋषभदेव निर्जरा भावना के फलस्वरूप केवलज्ञान प्राप्त करके दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश देकर धर्मयुग का प्रारंभ करते हैं। तपस्वी तीर्थंकर ऋषभदेव को कोटि कोटि नमन।

Series

Barah Bhavana

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

02-Jan-2017

Bol

9