Emperor Bharata was living happily in Ayodhya. The world presumed he was happy because he possessed 96 thousand queens, 14 gems, and vast worldly riches. Instead, the true source of his happiness was not physical opulence but his inner splendor. Engrossed in experiencing the glory of his soul, One night, Emperor Bharata saw the following 16 peculiar dreams at midnight:
1. The first dream showed a line of 23 tigers walking one after the other.
2. In the second dream, the last tiger was followed by a herd of deer going elsewhere.
3. The third dream showed a large lake with water in all corners despite being dry in the middle.
4. In the fourth dream, A monkey was seen sitting on an elephant's head.
5. The fifth dream revealed a gentle cow consuming withered leaves while leaving aside tender grass.
6. In the sixth dream, a tree devoid of leaves stood utterly dried up.
7. In the seventh dream, dried leaves filled the entire earth.
8. The eighth dream showed a madman wearing beautiful clothes and jewelry.
9. A dog ate food on a golden plate in the ninth dream.
10. The tenth dream showed an owl and a crow harassing a swan and causing distress.
11. In the eleventh dream, a horse was pulling an elephant chariot.
12. The twelfth dream showed an ox staring at everyone while running away from his herd.
13. In the thirteenth dream, two oxen were grazing together in the forest.
14. In the fourteenth dream, dust was maligning extremely bright gems.
15. The fifteenth dream showed that trees obstructed the moon's brightness.
16. Finally, the sixteenth dream showed that clouds surrounded the sun rising in the sky.
In this way, Emperor Bharata saw these strange dreams at midnight. Pondering over them in the early morning, he noted that the interpretation of the dreams was neither clear nor indicated within the dreams. But he had a strong feeling that the interpretation would not be auspicious. He felt that visiting Mount Kailasa would help him determine the interpretation of these dreams. He believed that Bhagwan Adinatha's divine discourse could resolve this dilemma. Thus, accompanied by his ministers and companions, the emperor set forth to Mount Kailasa.
भरत चक्रवर्ती के 16 स्वप्न – चक्रवर्ती सम्राट अपनी अयोध्या नगरी में अत्यंत सुखपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनकी 96 हजार रानियाँ, चौदह रत्न, षटखण्ड की सम्पदा – जगत को तो उनके सुख का आधार यही दिखाई देता था परन्तु उनके सुख का वास्तविक आधार ये जड-वैभव नही अपितु आत्मवैभव था। उसी आत्मवैभव में मग्न चक्रवर्ती भरत ने एक दिन अर्धरात्रि में विचित्र 16 स्वप्न देखे, जिनमें /–
पहला – पंक्तिबद्ध २३ शेर एक के पीछे एक चलते हुए जा रहे हैं।
दूसरा – अन्तिम शेर के पीछे मृगों का समूह है, जो उसके पीछे नही चल रहा है, अन्यत्र जा रहा है।
तीसरा – एक बडा तालाब, जो बीच में से सूखा है परन्तु चारो कोनों में पानी है।
चौथा – हाथी के सिर पर बन्दर बैठा है।
पाँचवाँ – एक गाय कोमल घास को छोडकर सूखे पत्ते खा रही है।
छठा – एक वृक्ष जिसके सारे पत्ते झड गये हैं और वह एकदम सूख गया है।
सातवाँ – सम्पूर्ण पृथ्वी सूखे पत्तों से भरी है।
आठवाँ – एक पागल सुन्दर वस्त्राभूषणों से युक्त है।
नौवाँ – सोने की थाली में कुत्ता खाना खा रहा है।
दसवाँ – उल्लु और कौवा, हंस को तंग कर रहे हैं, उसे कष्ट पहुँचा रहें हैं।
ग्यारहवाँ – हाथी के रथ को घोडा लेकर जा रहा है।
बारहवाँ – एक छोटा सा बैल अपने समूह को छोडकर घूरता हुआ भाग रहा है।
तेरहवाँ – दो बैल एक साथ जंगल में घास चर रहे हैं।
चौदहवाँ – अत्यंत उज्जवल रत्नों का समूह धूल से मलिन हो रहा है।
पन्द्रहवाँ – धवल प्रकाश के चन्द्रमा के सामने वृक्ष का आवरण है।
सोलहवाँ – नभमंडल में उदित सूर्य को मेघों के समूह ने घेरा हुआ है।
इस प्रकार विचित्र स्वप्नों को सम्राट भरत ने अर्धरात्रि में देखा, जिनका फल अभी ज्ञात नही और ना ही उसका कोई संकेत इन स्वप्नों में ज्ञात हुआ परन्तु इन स्वप्नों का फल निश्चित ही शुभ नही है ऐसा प्रातः बेला में विचार करते हुए सम्राट ने सोचा कि इन स्वप्नों का फल जानने कैलाश पर्वत जाना होगा, वहीं भगवान आदिनाथ की वाणी में इस ऊहापोह का समाधान मिल सकता है। अतः सम्राट अपने मंत्री-मित्रों के साथ कैलाश पर्वत पहुँचे।