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Title

Ashrav Bhavana

आस्रव भावना:- गजकुमार श्रीकृष्ण के छोटे भाई और नेमिनाथ भगवान के चचेरे भाई थे। विवाह योग्य होने पर उनका विवाह सोमशर्मा सेठ की सुंदर पुत्री सोमा तथा कई और अन्य कन्याओं से हुआ। उसी समय भगवान नेमिनाथ समवशरण सहित गिरनार पर्वत पर विराजमान थे। इसलिए गजकुमार और सभी दर्शन हेतु गिरनार पहुँचे। उस वक्त भवतापनाशक दिव्यध्वनि में आस्रव भावना का स्वरूप समझाया जा रहा था। सभी संसार का मूलकारण मिथ्यात्त्वादि आस्रव भाव हैं और वे आकुलतामयी और दुखदायी है। इन आश्रव के विरुद्ध अपनी त्रिकाली आत्मा स्वभाव परमशुचि, अविकारी होने से सुखरूप और परम् उपादेय है। वीतराग रसयुक्त दिव्यध्वनि में आस्रव भावना का वर्णन सुनकर गजकुमार का हृदय वैराग्य से भर गया और वे आत्मचिंतवन में लीन हो गये। संसार रमणी नहीं बल्की शिवरमणी को वरने के लिए मेरा अवतार हुआ है। इसी विचार में गजकुमार ने माता-पिता की आज्ञा लेकर प्रभु के पास जिनदीक्षा धारण की। उसके साथ सभी कन्याओं ने भी आर्यिका दीक्षा अंगीकार की। स्मशान के समीप आत्मध्यान में लीन गजकुमार मुनि के पास क्रोधित सोमा के पिता आये और उन्होंने स्मशान की मिट्टी की सिगड़ी बनाकर उसमें स्मशान के गरम अंगारे डालकर उसे पगड़ी की तरह गजकुमार मुनि के मस्तक पर रखी। मुनिराज आत्मचिंतन में लीन थे। उन्होंने विचार किया उपसर्ग मेरे कसौटी का काल है अस्थिरताजन्य आस्रव भाव छोड़के शुद्ध स्वरूप में स्थिरता रखकर सिध्ददशा प्रकट करने का यह अपूर्व अवसर है। सोमा के पिता ने मुझे अग्नि की सिगड़ी नहीं बल्की महान मोक्ष की पगड़ी ही डाली है। गजकुमार अपने शुद्ध स्वभाव में ऐसे लीन हो गये कि उनका उपयोग फिर बाहर आया ही नहीं। अंतर मुर्हत में ही उन्होंने केवलज्ञान और मोक्षदशा प्रकट की। आस्रव भावना की आराधना से सरपर रखी हुई गरम सिगड़ी की पगड़ी को मोक्ष की पगड़ी में पलटने वाले अंत:कृत केवली गजकुमार को कोटि कोटि प्रणाम।

Series

Barah Bhavana

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

02-Jan-2017

Bol

7