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अशरण भावना:- सर्वज्ञनो धर्म सुशर्ण जाणी, आराध्य आराध्य प्रभाव आणी। अनाथ एकांत सनाथ थाशे, एना विना कोई न बाह्य स्हाशे। महातपोधन, महामुनि, महाप्रज्ञावन्त, महायशवंत, महानिर्ग्रंथ और महाश्रुत मुनि ने मगध देश के श्रेणिक राजा को अपने बीते हुए चरित्र से जो उपदेश दिया है, वह सचमुच अशरण भावना सिद्ध करता है। महामुनि द्वारा भोगी हुई वेदना के समान अथवा इससे भी अत्यंत विशेष वेदना को अनंत आत्माओं को भोगते हुए हम देखते हैं, यह कैसा विचारणीय है। संसार में अशरणता और अनंत अनाथता छाई हुई है। उसका त्याग उत्तम तत्त्वज्ञान और परमशील के सेवन करने से ही होता है। यही मुक्ति का कारण है। जैसे संसार में रहता हुआ पुरुष अनाथ था उसी तरह प्रत्येक आत्मा तत्त्वज्ञान की प्राप्ति के बिना सदैव अनाथ ही है। सनाथ होने के लिये सदैव सद्धर्म और सद्गुरु को जानना और पहचानना आवश्यक है।
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Bol