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Title

Aacharya Kundkunddev

आचार्य श्री कुन्दकुन्ददेव

परम आध्यात्मिक सन्त कुन्दकुन्दाचार्यदेव को समग्र दिगम्बर जैन आचार्य परम्परा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। उन्हें भगवान महावीर और गौतम गणधर के तत्काल बाद मंगलस्वरूप स्मरण किया जाता है। दिगम्बर जैन समाज कुन्दकुन्दाचार्य देव के नाम एवं काम ( महिमा ) से जितना परिचित है, उनके जीवन से उतना ही अपरिचित है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इनका समय विक्रम संवत् का आरम्भ काल है। इन्हें कई ऋद्धियाँ प्राप्त थीं और इन्होंने विदेह क्षेत्र में विराजमान विद्यमान तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधरनाथ के साक्षात दर्शन किए थे। इनका वास्तविक नाम पद्मनन्दि है। कौंडकुण्डपुर के वासी होने से इन्हें कुन्दकुन्दाचार्य कहा जाने लगा।

       कुन्दकुन्दाचार्य देव के निम्नलिखित ग्रंथ उपलब्ध हैं - समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, द्धादशानुप्रेक्षा और दशभक्ति। रयणसार और मूलाचार भी उनके ही ग्रंथ कहे जाते हैं। कहते हैं उन्होंने चौरासी पाहुड़ लिखे थे। यह भी कहा जाता है कि इन्होंने “षट्खण्डागम” के प्रथम तीन खण्डों पर “परिकर्म” नामक टीका लिखी थी, जो उपलब्ध नहीं है। समयसार जैन अध्यात्म का प्रतिष्ठापक अद्वितीय महान शास्त्र है। आचार्य कुन्दकुन्द देव के ग्रंथों को आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी ने जन-जन की वस्तु बना दिया है। उन्होंने उन पर अनेकानेक प्रवचन किए हैं।

Series

Aacharya

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Artist

Anil Naik

Completion Year

13-Jan-2015