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Title

Samaysaar - Gatha No. 8

जैसे किसी म्लेच्छ से यदि कोई ब्राह्मण “स्वस्ति” ऐसा शब्द कहे तो वह म्लेच्छ उस शब्द के वाच्य- वाचक सम्बन्ध को न जानने से कुछ भी न समझकर उस ब्राह्मण की ओर मेंढे की भांति आँखें फाड़कर टकटकी लगाकर देखता ही रहता है, किन्तु जब ब्राह्मण की और म्लेच्छ की भाषा का – दोनों का अर्थ जानने वाला कोई दूसरा पुरूष या वही ब्राह्मण म्लेच्छ भाषा बोलकर उसे समझाता है कि “स्वस्ति” शब्द का अर्थ यह है कि “तेरा अविनाशी कल्याण हो”; तब तत्काल ही उत्पन्न होनेवाले अत्यंत आनन्दमय अश्रुओं से जिसके नेत्र भर जाते हैं – ऐसा वह म्लेच्छ इस “स्वस्ति” शब्द के अर्थ को समझ जाता है।

इसीप्रकार व्यवहारीजन भी “आत्मा” शब्द के कहने पर “आत्मा” शब्द के अर्थ का ज्ञान न होने से कुछ भी न समझकर मेंढे की भांति आंखे फाड़कर टकटकी लगाकर देखते रहते हैं, किन्तु जब व्यवहार – परमार्थ मार्ग पर सम्यग्ज्ञानरूपी महारथ को चलानेवाले सारथी की भांति अन्य कोई आचार्य अथवा “आत्मा” शब्द को कहने वाला स्वयं ही व्यवहार-मार्ग में रहता हुआ आत्मा शब्द का यह अर्थ बतलाता है कि “दर्शन, ज्ञान, चारित्र को जो सदा प्राप्त हो, वह आत्मा है”; तब तत्काल ही उत्पन्न होनेवाले अत्यंत आनन्द से जिसके हृदय में सुंदर बोध – तरंगे (ज्ञान- तरंगे) उछलने लगती हैं – ऐसा वह व्यवहारीजन उस “आत्मा” शब्द के अर्थ को अच्छी तरह समझ लेता है।

(गाथा 8 टीका)

Series

Samaysaar Drashtant Vaibhav

Category

Paintings

Medium

Oil on Canvas

Size

36" x 48"

Orientation

Landscape

Completion Year

01-Jul-2018

Gatha

8